Skip to main content

क्या मेरी इज़्ज़त मेरी 'वर्जिनिटी' से है?

क्या इज़्ज़त पाने के लिए एक महिला का 'वर्जिन' होना ज़रूरी है? क्या दूसरों की नज़रों में अपने लिए सम्मान पाने के लिए यह ज़रूरी है? अगर हां, तो ऐसी इज़्ज़त और ऐसा सम्मान किसी महिला को नहीं प्यारा है। कम से कम मुझे तो नहीं।
मेरी इज़्ज़त और मेरा सम्मान अगर इस एक शब्द पर निर्भर करता है, तो मुझे यह नहीं चाहिए। लोग पूछते हैं कि किसने तुम से बोला कि इज़्ज़त के लिए वर्जिन होना ज़रूरी है। अफसोस की बात यह है कि लोगों को बोलना नहीं पड़ता। यह तो सामाज का जैसे एक नियम बन गया है। अब आप पूछेंगे कि मैं ऐसा क्यों कह रही हूँ। जवाब कुछ यूं है कि टी.वी. सीरियलों में, मूवीज़ में, यहां तक कि कुछ न्यूज़ चैनलों पर भी ऐसा बोला जाता है कि 'अगर किसी लड़की का बलात्कर हुआ है, तो उसकी इज़्ज़त लुट गयी है'। अब मैं आपसे पूछती हूँ आखिर क्यों? क्या एक कामयाब इंसान बनकर इज़्ज़त और सम्मान नहीं पाया जा सकता? क्या एक महिला दुनिया की पहली गोल्ड मेडलिस्ट बनकर इज़्ज़त नहीं पा सकती? कल को अगर मैं एक अच्छी नौकरी करूं, अपने माँ-बाप की बुढ़ापे की सहारा बनूं, तो क्या मुझे इज़्ज़त नहीं मिलेगी? क्या उस महिला पत्रकार को इज़्ज़त नहीं मिलनी चाहिए जो देश के सामने सच लाने के लिए कभी-कभी अपनी जान जोखिम पर डालती है? क्या उस अध्यापिका को इज़्ज़त नहीं मिलनी चाहिए जिसने हज़ारों बच्चों को पढ़ा-लिखाकर उनको उनके पैरों पर खड़ा किया है? और सबसे महत्वपूर्ण उस मां की इज़्ज़त जिसने अपने बच्चे को पैदा किया, उसको पाल-पोस कर बड़ा किया? क्या उस गृहणी को इज़्ज़त नहीं मिलनी चाहिए जिसने घर को 'घर' बनाया? वह गृहणी जो 'housewife' नहीं 'homemaker' है?
मेरी मानें तो मिलनी चाहिए। ज़रूर मिलनी चाहिए। लेकिन क्या हम देते हैं इज़्ज़त? नहीं देते हैं। ज़्यादातर तो नहीं। में एक ऐसी दुनिया का सपना देख रही हूँ जहां हर औरत को इज़्ज़त दी जाए और सम्मान दिया जाए। में इंतेज़ार करती हूँ उस दिन का जब टी.वी. पर मुझे यह नहीं सुनना पड़ेगा कि बलात्कार होने के कारण एक लड़की/महिला ने अपनी इज़्ज़त खो दी।
आशा करती हूँ कि दुनिया बदलेगी और वो दिन आएगा।
"लड़े हैं, जीते हैं।
लड़ेंगे, जीतेंगे।"
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं।
आप सब अपने आप में एक मिसाल हैं।

सना
SANA

Comments

  1. बहुत खूब तरह से दर्शाया आपने समाज का यह पहलू , आपके शब्दों ने मन और हृदय को प्रफुल्लित कर मन मोह लिया ।

    ReplyDelete
  2. Wah sana bahut acha likhi ho ... tumne izzat ki paribhasha bahut khoobsurti se prabhashit ki hai

    ReplyDelete
  3. वाह सना. बहुत असहज करने वाली बातें रखी हैं तुमने. हमारी भाषा में हमारी मानसिकता झलकती है. हम अक्सर उससे अनजान होते हैं जबकि हमें सचेत होना चाहिए कि जब हम बलात्कार को इज़्ज़त से जोड़ कर कुछ कहते हैं तो उसका अर्थ बहुत दूर तक जाता है. मैं वादा करता हूँ कि आगे से ऐसी भाषा इस्तमाल नहीं करूँगा.

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी। शुक्रिया।

      Delete
  4. वाह सना। तुमने एक पुरानी और कोने में रख दी गई बहस को नए अर्थ दिए हैं। इसे आगे ले जाने की जरूरत है। इसका सबसे बड़ा जिम्मेदार तो मीडिया ही है जो नासमझी में इस शब्द के आगे-पीछे कहानी बुनता रहता है। सच तो ये है कि बहुत समझदार और स्त्री अस्मिता के प्रति सचेत लोग भी अनजाने में इसका इस्तेमाल करते रहते हैं। यूँ ही लिखती रहो। फिर से बधाई
    नागेन्द्र

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वृक्ष उन्हें भी छाया, लकड़ी और फल देते हैं जो उन्हें काटते हैं

          मनुष्य के जीवन में वृक्ष की बहुत मान्यता है| वृक्ष हमें कितनी सारी चीज़ें प्रदान करते हैं| परन्तु सबसे अहम् वे हमें आक्सीजन देते हैं, जिसके कारण हम जीवित हैं| कहीं-न-कहीं हम सब को यह बात पता है कि वृक्ष हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, तब भी हम उन्हें काटते हैं|           वृक्ष उन्हें भी छाया, लकड़ी और फल देते हैं जो उन्हें काटते हैं| यह बात हम सब को पता तो है परन्तु कोई मानना नहीं चाहता| हम जब पेड़ों को काटते हैं तो यही सोचते हैं कि "एक पेड़ को काटने से क्या हो जायेगा"| लेकिन एक-एक करके वे लाखों की तादाद में कट जाते हैं| दोस्तों! पर्यायवरण के बारे में नहीं, तो, कम-से-कम अपने बारे में हे सोच लीजये| अगर पेड़ नहीं तो हम नहीं|           अच्छा वो सब छोडिये| एक बात बताइए, आज-कल काफी गर्मी हो रही है ना? बारिश का तो नामो-निशाँ नहीं है| घर से बहार निकलो तो लगता है की अभी बस बेहोश हो जायेंगे| लेकी  इन सब का कारण क्या है? पेड़ों का काटना| जी हाँ! पेड़ों के काटने से मौसम में काफी बदलाव आते हैं| बारिश न होना, अत्यंत...

HAPPY REPUBLIC DAY/ गणतंत्र दिवस की बधाई

We celebrate Republic Day on 26th January every year as a remembrance of our Constitution. The Constitution of India came into effect from 26th January, 1950 and made India a completely independent republic . We also celebrate the Constitution Day on 26th November because on 26th November 1949 we adopted our Constitution. The Constitution is also the supreme law of the land and none can violate the provisions of the Constitution. I wonder how difficult is it to understand the Indian Constitution because we have a Preamble to the Constitution which is the basic structure of the Constitution and which tells us the main aims and what is the Indian Constitution all about. Our ancestors, freedom fighters gave us this Constitution to have a definite and written set of laws/rules which would be followed throughout the years. The Constitution declares all the citizens as equal and cannot be discriminated on any ground. Being a political science student, I studied the Constitution, the arti...

Death & Numb Feelings

TW: THIS POST TALKS ABOUT DEATH AND EMOTIONS RELATED TO IT, WHICH MAYBE PROVOKING.  Today, I was watching an English show and the particular episode was about someone passing away. It reminded me of the time between 2020- till date and all the people I lost during this time period.  I also realized how during this whole hustle of battling corona and life I had actually not gotten the time to even mourn properly. We all lost so many people during Corona and we couldn't even be there with our loved ones because of the fear of the spreading virus. Adulting hit a little more when I also realized that due to college and being so far away I couldn't attend funerals of my loved ones.  I cried watching the episode today. It felt good to get a little weight off my chest because hearing about deaths during Covid made me so numb that I couldn't even cry. I know that becoming completely numb about feelings is not healthy, but I guess that's just how I became during Covid and its st...